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बाबा रामदेव और अन्ना हजारे की लड़ाई

Manoj Gautam
Manoj Gautam
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बाबा रामदेव और अन्ना हजारे एक दूसरे के विरोधी हो चुके हैं जबकि दोनों ने ही भ्रष्टाचार की विरुद्ध मुहीम छेद रखी है | अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार का विरोध महाराष्ट्र में किया जब्की बाबा रामदेव ने योग शिवरों के दौरान पूरे देश में किन्तु जंतर मंतर पर अनशन पर बैठने के बाद भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान का श्रेय अन्ना हजारे को मिला | दोनों ही सम्मानीय और आदर्शवादी हैं किन्तु भ्रष्टाचार के विरुद्ध श्रेया का लोभ दोनों में है | यही कारण है की एक दूसरे के विरोध पर उतारू हैं | विरोध की सीमा यहाँ तक पहुच चुकी है की बाबा रामदेव घोटालों की जननी ,और घोटालों को पुष्पित पल्लवित करने वाली कोंग्रेज़ के स्वर में स्वर मिला लोकपाल के दाएरे से प्रधानमन्त्री एवं मुख्या न्यायाधीश को मुक्त करने की वकालत कर नेताओं की तरह अपने ही बयान से पलट गए | जबकि वास्तविकता यह है की भ्रष्टाचार शीर्ष पदों से नीचे की ओर आता है | वर्त्तमान में कई नेता और मुख्यमंत्री ऐसे हैं जिन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है जिनका राजनीति में आने का उद्देश्य धर अर्जित करना है तथा अनेक जजों की भ्रष्टाचार में संलिप्रता उजागर हुई है | फिर भी पद की गरिमा का तर्क देकर लोकपाल विधेयक से मुक्त रखना कहाँ तक सही है ? पद की महत्वता पद विशेष से नहीं आचरणविशेष से होती है | यदि बाबा रामदेव और अन्ना हजारे श्रेय का लोभ को छोड़ दोनों मिलकर राष्ट्रहित में काम करें तो भ्रष्टाचार से निजात मिलना संभव है | भारतीय सनातन साहित्य निष्कर्ष लोभ और अहंकार के परित्याग पर आधारित है |

मनोज गौतम

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